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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

अध्याय - 2

चन्दबरदाई : कयमास वध

 

प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।

अथवा
पृथ्वीराज रासो प्रामाणिक अथवा अप्रामाणिक ग्रन्थ है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

जिस प्रकार महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण' को संस्कृत का 'आदि महाकाव्य' कहते हैं, इसी प्रकार महाकवि चंदबरदायी कृत 'पृथ्वीराज रासो हिन्दी का आदि महाकाव्य' है। यह विशालाकार काव्य हिन्दी का गौरव ग्रन्थ है। हिन्दी साहित्य की वीरगाथा काल की समस्त प्रवृत्तियाँ इस काव्य में प्रतिबिम्बित हो रही हैं। यह अपने समय का एक पर्वताकार दर्पण है जिसमें तत्कालीन युग की झाँकी स्पष्ट रूप में देखी जा सकती है। इस वृहदाकार 'पृथ्वीराज रासो में 69 समय (अध्याय) हैं। प्रत्येक अध्याय में किसी न किसी ऐतिहासिक घटना का वर्णन किया गया है। इतना महत्वपूर्ण होते हुए भी इतिहास के विद्वानों ने 'रासो' की प्रामाणिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाया गया है। इसमें वर्णित घटनाओं - वृत्तों की ऐतिहासिक सत्यता पर संदेह प्रकट किया है। हम यहाँ की रासो की प्रामाणिकता अप्रामाणिकता सम्बन्धी विभिन्न मतों की चर्चा कर रहे हैं।

राय बहादुर गौरी शंकर हीराचन्द ओझा, पंडित मोहन लाल विष्णु लाल पण्ड्या, महामहोपाध्याय पंडित हरप्रसाद शास्त्री आदि प्रसिद्ध विद्वानों ने 'पृथ्वीराज रासो' के विषय में पर्याप्त अनुसंधान किया है। इन विद्वानों की सम्मतियाँ भिन्न-भिन्न हैं, भिन्न दृष्टिकोणों में इन्होंने 'रासो' के इस प्रश्न पर चिन्तन-मनन किया है। रासो की प्रामाणिकता अप्रामाणिकता के सम्बन्ध में गहन विचार मन्थन करने वाले विद्वानों को तीन वर्गों में रखा जा सकता है

(क) 'पृथ्वीराज रासो' को प्रामाणिक रचना मानने वाले विद्वानों के नाम हैं- डॉ. श्यामसुन्दरदास, मोहनलाल विष्णुलाल पण्ड्या, मिश्र बन्धु तथा कर्नल टाड आदि। 'पृथ्वीराज रासो के 'नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित संस्करण को ये विद्वान प्रामाणिक मानते हैं। मोतीलाल मेनारिया भी इसी वर्ग के विद्वान हैं जो रासो को प्रामाणिक मानने के पक्ष में हैं। इस वर्ग के विद्वानों द्वारा जो तर्क प्रमाण दिये गये हैं वे इस प्रकार प्रस्तुत किये जा सकते हैं -

(1) 'पृथ्वीराज रासो' अपने 'मूल' रूप में प्रामाणिक रचना है, हाँ इसमें 'प्रक्षेपों के कारण कई इतिहास विरुद्ध घटनाओं का समावेश हो गया है।
(2) मोहनलाल विष्णुलाल पण्ड्या ने 'आनन्द संवत्' की जो कल्पना प्रस्तुत की है, इससे 90-100 वर्षों का अन्तर समाप्त हो जाता है और सभी तिथियाँ शुद्ध सिद्ध हो जाती हैं।
(3) पृथ्वीराज की माता का वास्तविक नाम सम्भव है। वही है जो 'रासो' में वर्णित है क्योंकि चन्दबरदायी पृथ्वीराज के अन्तरंग सखा थे, उन्हें वास्तविक नाम का ज्ञान हो।
(4) रासो की भाषा पर उर्दू, फारसी प्रभाव के सम्बन्ध में भी इस वर्ग के विद्वानों का तर्क उचित प्रतीत होता है। लाहौर में रहने वाले चन्दबरदायी की भाषा में उर्दू, फारसी शब्दों का प्रयोग अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता।

(ख) रासो को अप्रामाणिक मानने वाले विद्वान हैं - डॉ. वूलर कवि श्यामलालदास मुरारिदान, गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, तथा डॉ. रामकुमार वर्मा। डॉ. वूलर को जयानक नाम के एक कवि की रचना प्राप्त हुई पृथ्वीराज विजय। इस कृति में जो घटनाएँ या संवत आदि उल्लिखित हैं - वे इतिहास सम्मत हैं और 'पृथ्वीराज रासो' में दिये गये संवतों से मेल नहीं खाते। 'पृथ्वीराज रासो' की प्राप्ति से ही वस्तुतः रासो की प्रामाणिकता का विषय 'विवादास्पद' बना। तदनन्तर इसको अप्रामाणिक सिद्ध करने के लिए प्रमाण जुटाये गये युक्तियाँ खोजी गयीं और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा- "इस सम्बन्ध में इसके अतिरिक्त और कुछ कहने की जगह नहीं कि यह ग्रन्थ पूरा जाली है। यह हो सकता है कि उसमें इधर-उधर चन्द के कुछ पद भी बिखरे हों पर उनका पता लगाना असम्भव है। यदि यह किसी समसामयिक कवि का रचा होता है और इसमें कुछ थोड़े अंश भी पीछे मिले होते, तो कुछ घटनाओं और इसके कुछ संवत तो ठीक होते।" "पृथ्वीराज रासो" को अप्रामाणिक सिद्ध करने वाले विद्वानों ने अपने मत के समर्थन में जो तर्क प्रस्तुत किये हैं, वे इस प्रकार हैं-

(1) 'रासो' में वर्णित घटनाएँ और नाम इतिहास से मेल नहीं खाते।
(2) 'रासो' में परमार, चालुक्य और चौहान जिन्हें अग्निवंशीय क्षत्रिय कहा गया है जबकि वे सूर्यवंशी प्रमाणित हो चुके हैं।
(3) पृथ्वीराज का दिल्ली गोद लिया जाना इतिहास से प्रमाणित नहीं होता।
(4) संयोगिता स्वयंवर की घटना भी इतिहास सम्मत नहीं है जिसका विस्तृत वर्णन रासो में किया गया है।
(5) अनंगपाल, पृथ्वीराज तथा वीसलदेव के राज्यों के संदर्भ में भी इतिहासानुमोदित नहीं हैं।
(6) पृथ्वीराज की माता का नाम कर्पूरी था परन्तु 'रासो' में कमला बताया गया है।
(7) पृथ्वीराज की बहिन पृथा का विवाह मेवाड़ के राणा समर सिंह के साथ बताया गया है जो इतिहास सम्मत नहीं है।
(8) पृथ्वीराज द्वारा गुजरात के राजा भीम सिंह का वध 'रासो' में वर्णित है किन्तु यह इतिहास विरुद्ध है।
(9) 'रासो' में पृथ्वीराज के 14 विवाहों का वर्णन किया गया है - यह इतिहास से मेल नहीं खाता।
(10) पृथ्वीराज के द्वारा गौरी की मृत्यु भी इतिहासानुमोदित नहीं है।
(11) इसी प्रकार पृथ्वीराज द्वारा सोमेश्वर के वध का वर्णन भी चन्दबरदायी की कल्पना मात्र है। इतिहास में इसका समर्थन नहीं होता।
(12) 'रासो' में दी गई तिथियाँ (संवत्) भी अशुद्ध हैं। इन संवतों में तथा इतिहास ग्रन्थों में दिये गये संवतों में प्रायः 90-100 वर्ष का अन्तर है।

उक्त तर्कों तथा कतिपय अन्य प्रमाणों के आधार पर विद्वानों का एक वर्ग रासो को सर्वथा अप्रमाणिक स्वीकार करता है और चंदबरदायी के अस्तित्व तक में विद्वानों ने संदेह व्यक्त किया है।

(ग) विद्वानों का तीसरा मत 'पृथ्वीराज रासो' को अर्द्ध प्रामाणिक मानता है। श्री सुनीति कुमार चटर्जी, मुनिजन- विजय, अगरचन्द नाहटा, डॉ. दशरथ शर्मा तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी इस वर्ग के विद्वान हैं। ये विद्वान मानते हैं कि अपने 'मूल' रूप में 'पृथ्वीराज रासो की ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। 'रासो' के 'मूल' रूप की खोज पर इन विद्वानों ने विशेष आग्रह किया है। 'पृथ्वीराज रासो' के चार रूप हस्तलिखित रूप में विद्यमान हैं। इन चार रूपों की जानकारी के बिना 'रासो' की प्रामाणिकता अप्रामाणिकता का प्रश्न अनिर्णत ही रहेगा।

'पृथ्वीराज रासो का सबसे बड़ा संस्करण 'नागरी प्रचारिणी सभा' के द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस संस्करण का आधार उदयपुर के संग्रहालय की प्रति है। इस संस्करण में 69 समय (खण्ड) और 16306 छंद हैं। 'पृथ्वीराज रासो का द्वितीय रूप पंजाब के अबोहर तथा राजस्थान के बीकानेर में उपलब्ध है। यह संस्करण प्रकाशित नहीं है। इसमें 7000 छंद हैं। रासो का तीसरा रूप 3500 छंदों का है जिसमें केवल 18 समय (खण्ड) हैं। इस संस्करण की भी हस्तलिखित प्रतियाँ बीकानेर में विद्यमान हैं। चौथा संस्करण सबसे छोटा है, इसमें केवल 1300 छंद हैं। डॉ. दशरथ शर्मा आदि कतिपय विद्वान इसी को ही 'मूल' रासो स्वीकार करते हैं। उक्त चारों रूपान्तरों में उपलब्ध 'पृथ्वीराज रासो की जो प्रति जितनी छोटी है, जिसमें जितने कम समय और छंद हैं, उनमें अनैतिहासिक घटनाएं भी उतनी ही कम होंगी। 'रासो' को 'अर्द्धप्रामाणिक' मानने की धारणा भी उतनी ही कम होंगी। 'रासो' को 'अर्द्धप्रामाणिक' मानने की धारणा के मूल में यही विचार रहा है कि अपने मूल रूप में 'रासो' प्रामाणिक कृति है। हाँ कालान्तर में इसमें प्रक्षिप्रांशों का समावेश हो गया है। इसके मूल रूप में सन्धान की आवश्यकता है। इस विषय में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि रासो की रचना शुक शुकी संवाद के रूप में हुई थी। अतः जिन सर्गों में यह शैली प्रयुक्त नहीं हुई उन्हें प्रक्षिप्त मानना चाहिए। आचार्य द्विवेदी की इस मान्यता को स्वीकार करने से प्रायः वे ही अंश प्रक्षिप्त सिद्ध होते हैं जो इतिहास - विरुद्ध हैं। दूसरी मुख्य बात यह स्वीकार की जानी चाहिए कि 'रासो' एक काव्य रचना है, उसमें इतिहास का सत्य खोजना और इतिहास सम्मत न होने पर उसे अप्रामाणिक घोषित करना उचित नहीं कहा जा सकता। इस तथ्य को स्वीकार करना ही पड़ेगा कि पृथ्वीराज के दरबार में चंदबरदायी नाम का कवि था जिसने 'पृथ्वीराज रासो' की रचना की थी चंदबरदायी द्वारा रचित 'पृथ्वीराज रासो अपने मूल रूप में अब उपलब्ध नहीं है। डॉ. श्यामसुन्दर दास के शब्दों में "वर्तमान रूप में 'पृथ्वीराज रासो' में प्रक्षिप्त अंश बहुत अधिक हैं पर साथ - ही साथ बीच-बीच में चंद के छन्द बिखरे पड़े हैं और यह निश्चित जान पड़ता है कि वर्तमान 'रासो' चन्द रहित छन्दों का संकलित एवं सम्पादित रूप है।'

'पृथ्वीराज रासो' इतिहास और कल्पना का उद्भुत मिश्रण है। इसमें इतिहास भी है, 'कथाएँ भी हैं और कवि की कल्पनाशक्ति का मोहक रूप भी विद्यमान है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निष्कर्ष के साथ ही इस विवाद को समाप्त किया जा सकता है। द्विवेदी जी लिखते है- "रासो का काव्य रूप दसवीं शताब्दी के साहित्य रूप से समानता रखता है। इसकी संवाद प्रवृत्ति 'कीर्तिपताका' और 'सन्देश रासक' से साम्य रखती है। इसमें सभी प्राचीन कथानक रूढ़ियों का सुन्दर निर्वाह हुआ है। 'रासो' में संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य की प्रवृत्तियाँ भी दृष्टिगोचर होती हैं। 12वीं शती की भाषा संयुक्ताक्षर मय अनुस्वरान्त प्रवृत्ति इसमें उपलब्ध है। 'रासो विशुद्ध रूप से इतिहास ग्रन्थ नहीं है, प्रत्युत काव्य ग्रन्थ है। वस्तुस्थिति यह है कि प्राचीन भारतीय वाङ्मय में इतिहास को सीमित भौतिक अर्थ में ग्रहण न करके उसे व्यापक सांस्कृतिक रूप में ग्रहण किया गया है। उसमें 'तथ्यों' और 'कल्पना' का उदभुत सम्मिश्रण है तथा उसमें ऐतिहासिकता तथा निजंधरी कथाएँ साथ-साथ चलती हैं। द्विवेदी जी के इस महत्वपूर्ण विश्लेषण के आलोक में सहज ही यह स्वीरकार किया जा सकता है कि 'पृथ्वीराज रासो चाहे ऐतिहासिक दृष्टि से पूर्ण रूप से प्रामाणिक न हो, पर उसे कोरी कल्पना अथवा एकदम अनैतिहासिक अप्रामाणिक भी नहीं माना जा सकता। अतः 'पृथ्वीराज रासो' अर्द्धप्रामाणिक रचना है। आचार्य द्विवेदी ने उचित ही कहा कि इसकी प्रमाणिकता अप्रामाणिकता के निरर्थक मंथन को त्याग देना ही साहित्य और काव्य दोनों के हित में है। ऐतिहासिकता - अनैतिहासिकता के विवाद में 'पृथ्वीराज रासो' के 'काव्योत्कर्ष' की ओर विद्वानों ने बहुत कम ध्यान दिया है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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